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बरगद

बरगद

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बरगद हूं मैं शिव रूप बसा, बरगद हूं मैं शिव रूप बसा। 

आश्रय पंछियों का, शीतल छाव का निलय, 

चीटियों का वास स्थान, ऋषि मुनियों का तप स्थान हूं मैं, 

बरगद हूं मैं शिव रूप बसा, बरगद हूं मैं शिव रूप बसा। 


मेरी जड़े बहुत दूर तलक, शाखाएं है मोटी-मोटी, 

शुद्ध वायु का विसरण मुझसे, पूजा भी मेरी लोग करें, 

बरगद हूं मैं शिव रूप बसा, बरगद हूं मैं शिव रूप बसा। 


चल आकर मुझको ढूढ़ ले तू, ऐसा निर्जन स्थान हूं, 

मेरी महिमा का वर्णन कर,तू मुझमें खो जा, 

सब कहते मुझको राष्ट्रीय हैं, मैं कहता हूँ मैं बरगद हूं, 

बरगद हूं मैं शिव रूप बसा, बरगद हूं मैं शिव रूप बसा। 


जिसने भी मुझको ढूंढा है, आस्था रखा, वो पाया है, 

आत्म ज्ञान का दर्शन कर, चिर- निरंतर अपनाया है। 

बरगद हूं मैं शिव रूप बसा, बरगद हूं मैं शिव रूप बसा। 


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More hindi poem from Dr Abhishek Kumar Srivastava(अपने रीति-रिवाजों, परंपराओं में विश्वास, पूर्वजों के मान-सम्मान के दृष्टीकोण से कार्यों का संपादन,जयप्रकाश नारायण जी एवं गुरुदेव टैगोर जी को मार्गदर्शक मानना। )

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