STORYMIRROR

Jayantee Khare

Abstract

3  

Jayantee Khare

Abstract

जला देते हैं...

जला देते हैं...

1 min
183

चिराग़ भी कभी कभी

मुहाफ़िज़ का दामन जला देते हैं

ख़्वाहिशें रह जाती हैं और

लोग तन जला देते हैं

 

बाहर कहीं भटकता रहता है

शायद ये मन उनका

तभी जीते चले जाते हैं 

और अपना मन जला देते हैं


मिलता है लुत्फ़ सफ़र में

चलो जब आहिस्ता आहिस्ता 

बेताब हो दिवाने क्यूँ

बेवज़ह चिलमन जला देते हैं


भरोसा हो ग़र ख़ुदा का 

पनाह देते हैं ग़ैर भी

जब अपने ही अपनों का 

नशेमन जला देते हैं


दैरो हरम की तामीर में

कितने गुलों को रौंदते 

तितलियों को कर बेघर

सारा गुलशन जला देते हैं


दीनों धर्मगुलशन के नाम पर

खुदगर्ज़ी को पूजते 

इंसानियत का क़त्ल कर

चैनो अमन जला देते हैं।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract