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Husan Ara

Abstract

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Husan Ara

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रंग श्वेत

रंग श्वेत

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मन मेरा मस्तिष्क मेरा

नित नए भाव के संग।

प्रत्येक रंग से रंग जाऊं

बन जाऊं मैं श्वेत रंग।


कोमलता भी हो मुझमे

मैं फूलों का श्रृंगार करूं।

पापी दुष्ट के लिए कठोरता

का खुद में संचार करूँ।


प्रेम गुण ऐसा हो मुझमें

धरती अम्बर भर जाएं।

शत्रुता के लिए घृणा हो ऐसी

मैं उसका दाह संस्कार करूँ।


नाचूँ भी मैं गाऊं भी

खुशियों का भोग लगाऊं भी।

सबके दुख को दुख अपना मानूँ

दुखियों का सोग मनाऊं भी।


ठंडक पाए आग भी मुझसे

और गुस्सा कभी जताऊं भी।

बुराई का आलस्य हो मुझमे

सेवार्थ दिनों- रात जग जाऊं भी।


यूँ जीवन को जियूँ सदा

नित नए भाव के संग।

प्रत्येक रंग में रंग जाऊं

बन जाऊं मैं श्वेत रंग।


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