बेरंग होली
बेरंग होली
होली का पर्व मनाऊँ किसके संग
जब तुम ही न रहे मेरे संग
तुम्हारे असमय चले जाने से
बेरंग हो गई है मेरी ज़िंदगी
तो अब रंगोत्सव का यह पर्व
भला मैं कैसे मनाऊँ
अब तो रंग-बिरंगे रंगों से भी
करनी पड़ती है परहेज़ मुझे
एक विधवा भला कैसे मनाएं होली
समाज के बंधनों में हूँ बंधी मैं
इसी दिन तो तुम चले गए थे
मुझे अकेला छोडकर इस दुनिया से
सच कहती हूं जी रही हूँ
बस किसी तरह साँसें शेष है बस तन में।
