कभी कभी
कभी कभी
कभी कभी
हम जिसे अपना
समझते हैं
वही हमारे
लिये बेगाना
बन जाता है
कभी कभी
हमारे चारों ओर
रिश्तो की भीड़
होती हैं
जो ये एहसास
दिलाती है
की हमारे कितने अपने है
कभी कभी हम
रिश्तो की भीड़ में
अकेले हो जाते हैं
आँसू थमते नहीं
पोछते पोछते
हम थक जाते है
फिर धीरे धीरे
रोते रोते
मुस्कुराना
सीख जाते है
कभी कभी हम
कितने समझ दार
बन जाते हैं।
