STORYMIRROR

Dr Lalit Upadhyaya

Drama

3  

Dr Lalit Upadhyaya

Drama

बरगद की छांव

बरगद की छांव

1 min
247

गलियों में खेले गिल्ली डंडे,

वहां थे हम भले चंगे,


बहुत देखे हमने शहर के दंगे,

गंजो को भी हमने बेचे कंघे।


याद आता है गांव,

बरगद की वो छांव,


नदी में चलती नाव,

खेत में काम करने का चाव।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Drama