बंधन
बंधन
न बांधो मुझे वैसे,
कि जैसे जीवन बंध कर रह जाता है,
सामाजिक नियमों के दायरों में।
न बांधो ऐसे,
कि जैसे ख्वाहिशें बंध जाती,
नैतिकता की कोरी कल्पनाओं में।
मुझे वैसे न बांधो,
कि जैसे क्षमताएँ बंध जाती है,
एक उम्र के बाद।
कि जैसे बारिश का पानी,
बंध जाता है सड़क के गड्ढों में।
न बांधो इस तरह मुझे,
कि जिसे बंधना कह सके।
बांधों तो ऐसे कि जैसे प्रसव पीड़ा,
बंध जाती है शिशु के कोमल स्पर्श से।
कि जैसे प्रेम बांध लेता है,
हृदयगत भावों को।
बांधो तो ऐसे कि जैसे,
किसी गीत मे छन्द मे शब्द बंध जाते हैं।
कि जैसे लहराती नदी,
बंध जाती है शिथिल किनारों से।
कि जैसे सुरीली लोरी,
बांध लेती है नखरीली नींद को।
कि जैसे मेरे शब्द उन्मुक्त स्वच्छन्द,
लेकिन बंधे हुए मेरे विचारों से ।।
