बिखरे सपने
बिखरे सपने
मुझसे बिछड़ गये सब अपने
बिखर गये जो, पिरोये थे सपने
इसमें किसी का क्या कसूर
हम खुद भी तो है मजबूर
कितने अरमानों से सजाया हमने
जल गया गुलिस्तां, इन आँखों के सामने
बेसूर हो गये मेरे सारे सूर
खो गया उसपर चेहरे का नूर
मुरझायी कली सा आलम सारा
बदल सकते हो, तुम क्या यह नजारा ?
कोशिश करके देख लो, और एक बार
मान भी जाओ, मैं करूँगी तुम्हारा इंतज़ार ......