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चहक Nath

Abstract Fantasy

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चहक Nath

Abstract Fantasy

बिखरे ख़्वाब

बिखरे ख़्वाब

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मेरे कुछ ख़्वाब हैं ऐ ज़िंदगी

गर मुनासिब हो तो पूरा करना।।

जिन रास्तों पर चलना हो मुझे

उन्हें अब कांटों से न भरना।।


उलझने काफ़ी थी अब तक मन में मेरे

अब मन को सुलझाए ऐसा जतन करना।।

कुछ दर्द छिपे थे दरख़्त ए दिल में मेरे

मलहम सा कोई हबीब देना।।


दुरुस्त हो अब के नाज़ो नखरें मेरे

ऐसा लतीफ़ ए आशिक मिले।।

जब भी बने तलाब मेरे नयनों में

कंधो में उसके मुझे बांध मिले।।


कुछ ऐसा कर ए ज़िंदगी

 मेरे बिखरे ख़्वाब को मंजिल मिल।।


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