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चहक Nath

Abstract Inspirational

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चहक Nath

Abstract Inspirational

धरा का शृंगार

धरा का शृंगार

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जो ऐसे बिख़र गई,

उस धरा को संवारने,

आओ माटी के वीर सपूतों,

प्रकृति को सजानेI


स्नेह दिया इसने हमको,

अब इसकी बारी आई है,

कर्ज उतारने का ही सही,

धरा कप संवारने का ही सही,

बढ़ा दो अपने हाथों को,

अब दुल्हन बनाने की बारी आई है;

जो बिख़र रही है ये धरा,

उसको सजाने की बारी आई है।


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