मेरा वजूद
मेरा वजूद
हवसी आँखों को चीरते
लपकते हाथो को खींचते
खुद की पहचान बनाने
आई हूँ
हाँ... मैं हूँ लक्ष्मी
हर दरिंदे पर तलवार
चलाने आई हूँ।
कौन हो तुम जिसके
बंदिशों के सवालों के
जवाब दूँ मैं
कौन हो तुम जिसके
इशारों का सामान हूँ मैं
तुम्हारी तानाशाही संहार
करने आई हूँ
हाँ....मैं हूँ लक्ष्मी
अब तलवार चलाने आई हूँ।
जब से पैदा हुई मैं
एक अनजाने डर में
पाला गया
ये न करो, वो न करो,
अरे यहां न जाओ
जो किसी लड़के से
दोस्ती कर गई
समझो लड़की बह गई
ऐसे कुछ सो कॉल्ड
गुणों की घुट्टी पिलाई गई
और मेरे कोमल मन को
बार बार इन नपुंसक
बादशाहों के समाज में
दबाई गई।
बहुत दर्द उठता है इस
मुट्ठी भर के दिल में
न जाने इतना करने
पर भी क्यों तड़पता है
जो इसकी कोमलता को
मिटाने में लगता है
ये कमबख्त उसी को पापा,
भाई, चाचा, ताऊ और
पति कहता है।
ऐसे झूठे प्यार को
मिटाने आई हूँ
हाँ ...मैं ही हूँ लक्ष्मी
अब तलवार चलाने आई हूँ।
न समझो अब मुझे वो
घूंघट में सिमटी
हाड़ी भर की नारी ,
ज़रा नज़र उठा के देख
मैं तुझ जैसे करोड़ो पर
पड़ने लगी हूँ भारी
तू क्या मुझे अब रोकेगा
ख़ुद की पहचान बनाने से
तेरी पहचान ही हमसे है
अब थोड़ा खुद पर भी
तरस खाओ
समाज के सुधारक
जो हम ने हाथ
उठा दिया तो
हो जाओ गये
यहाँ से नदारद
अब तुम क्या मुझे सिखाओगे
इज़्ज़त का पाठ पढ़ाना
अब हमारी इज़्ज़त पर
बाज़ सी निगाह है न दौड़ाना
अब हाथ में चूड़ी नहीं तलवार है
ज़रा सोच समझ के देखना
अब सामने जो खड़ी है बस
उसी से तुम्हरी हार है।।
