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Himanshu Sharma

Fantasy

4  

Himanshu Sharma

Fantasy

भीगी कविता

भीगी कविता

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एक कविता भीग गयी,

आज पहली बारिश में!

हर्फ़ भी बह गए, देखो,

क़ुदरत की साज़िश में!


किर्तास तर हुआ देखो,

कैसे कुछ इस पे लिखूँ?

ख़्याल भी बह गये, कि,

अब कैसे किस पे लिखूँ?


सोचा ज़ेहन को बचा लूँ,

पर, ज़ेहन भी भीग गया!

पशोपेश में हूँ, मैं "क़ैस",

ख़ता की या ठीक किया!


अब भी वो किर्तास पड़ा,

ऊपर की जेब में तर हो!

अब, अगली नज़्म लिखूँ,

शायद, इससे बेहतर हो!


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