भैस का कुत्ता कनेक्शन
भैस का कुत्ता कनेक्शन
सरोज और विष्णु ना तो अपने गाँँव की मिट्टी को भूल पा रहे थे और ना ही गाँव के तौर तरीके, भले ही शहरीकरण के कारण उनके गाँव की गिनती अब शहर में होने लगे थी।
मकान तथा सड़कें कच्ची से पक्की बन गई, घर-घर में पानी आने लगा। बच्चें पढ़-लिख कर नौकरियाँ करने लगे। लेकिन सरोज और विष्णु का गाय-भैंस पालने का शौक अभी भी खत्म नहीं हुआ। उनके हिसाब से घर का शुध्द दूध बच्चों की हड्डियों को मजबूती प्रदान करता है तथा तन-मन को शक्ति प्रदान करता है। लेकिन पढ़े-लिखे बेटा-बहू सुनील और शिखा को उनका भैंस पालना कतई पसंद नहीं था।
क्योंकि घर में हर समय उठती गोबर की गंध न तो उन्हें और ना ही एक वर्षीय नन्हें अयान को पसंद आती। सुनील के अनुसार गोबर की गंध से छोटे अयान को इंफेक्शन हो जाता है।
अत: वह ह
र समय माँ-पिता जी पर भैंस को बेचने का दबाव बनाए रखता। एक दिन बहस कुछ ज्यादा लंबी हो गई और सुनील को सरोज और विष्णु की सारी दलीलें बेमानी लगी। उसके अनुसार बाहर से पैकेट वाला दूध आसानी से उपलब्ध हो जाता है, फिर क्यों इतनी मेहनत की जाए--?
माँ सारा दिन भैस की तीमारदारी और दूध की देखभाल में लगी रहती है। जिसकी वजह से वह नन्हें अयान का ढंग से ध्यान नहीं रख पाती। रोज-रोज की चिक-चिक से तंग आकर आखिरकार विष्णु ने अपनी छाती पर पत्थर रख कर भैंस को भेज दिया। बच्चों के चेहरे पर खुशी की लहर दौड़ पड़ी। तभी शिखा एकदम से चहकते हुए, अब तो हम घर में शेरू को बड़े आराम से रख सकते हैं, अयान भी उसके साथ खेल कर खुश हो जाएगा। चार दिन बाद भैंस की जगह नया मेहमान कुत्ता शेरू घर में उछल-कूद मचा रहा था।