भावों का हरापन !
भावों का हरापन !
कुछ भावों को मना कर
उनमें सहेजा था हरापन
जो बीते सावन में उगा था
सर्दियों की गुनगुनी धूप
मैंने सिरहाने रख ली थी
बसंत की पिली सरसों को
भी छुपा कर रख ली थी
और पेड़ों से झरते पत्तों
को समेट कर रख ली थी
अब वो भाव अंगड़ाई लेने
लग गए है कल को वो गर
मेरे आखरों में उतरने लगे
तो तुम पढ़ने आओगे ना !