भारत
भारत
जब विश्व में जहाँ में सभ्यता भी ना थी आई,
उस समय में हमने लौ ज्ञान की जलायी,
जब शेष विश्व सारा वन वन में डोलता था,
एक उच्च कोटि जीवन सिंधु में फूलता था,
वेदों से ज्ञान बांटा संसार भर में जाकर,
धन्य हो गया मनुज मन महावीर बुद्ध पाकर,
कर्मवाद का प्रणेता भारत ही तो रहा है,
गीता के जैसा दर्शन भारत ने ही दिया है,
इस रज़ पे जो भी आया अपना उसे बनाया,
यूनानी भले हों अरबी सबको गले लगाया,
शक हूण हों वो चाहे हों कुषाण वंशज,
सब भूल अपनी हस्ती पा गए इसी की रंगत,
मुगलों ने भी आकर इसकी संस्कृति बढ़ाई,
तभी तो इसमें हमने विविधता की दृढ़ता पायी,
शान्ति के साथ हमने सदा शौर्य को भी पूजा,
जन्मे यहीं शिवाजी कहाँ राणा प्रताप दूजा,
हने तोड़ने जहाँ ने कई सौ बरस लगाए,
लेकिन हमारी रज़ को वो छू तक ना पाए,
इस मजबूत नींव में हम गिर गिर के फिर खड़े हैं,
विश्व गुरु बनने हम फिर निकल पड़े हैं,
दिन दूर वो नहीं है विश्व नमन फिर करेगा,
सदियों पूर्व वाला भारत पुनः बनेगा,
वो सम्मान ज्ञान अपना वापस पाएंगे हम,
एक नया सा भारत आज फिर बनाएंगे हम।।