ऋतुओं का सरताज़
ऋतुओं का सरताज़
आहट मिली बसंत की,बही सुगंध बयार।
गरमी आवत देखकर , सरदी हुई फरार।।
सरदी हुई फरार, धरा ने ली अँगड़ाई।
महके फूल बगान और कलियाँ मुस्काईं।।
कहता है "आज़ाद" हुई मन में अकुलाहट।
प्रकृति भई निहाल,मिली बसंत की आहट।।
कोयल कूँ कूँ कर उठी, डाल डाल इतराय।
मन मयूर नाचन लगा,हिय के पर छितराय।।
हिय के पर छितराय, शमां कुछ ऐसा बाँधा।
मनहुँ मुरलिया धुन पर, नाचति आवै राधा।।
कहता है "आज़ाद" मस्त मन ऐसो खोयल।
जाग्यौ भयो विहान कर उठी कूँ कूँ कोयल।।
ऋतूराज कहते सभी, तू ऋतुओं में महान।
कविगण सदा बखानते, दे उपमा उपमान।।
दे उपमा उपमान, तेरो गुन- गाथा गाते।
कामदेव की तुम्हें सवारी कह बतियाते।।
कहता है "आज़ाद"ऋतुओ में जो सरताज।
वह देखो आ गया, जिसे कहते ऋतुराज।।