पथ प्रदर्शक
पथ प्रदर्शक
मैंने सुना
उसने कहा मुझे
"तुम्हें अहसास नहीं है अपने होने का
अपनी योग्यताओं का अपनी कलाओं का
सहज प्राप्य है तुम्हें वह सब कुछ
जो गढ़ा जाता है अथक
परिश्रम से।
तुम अनजान हो
उन सब युक्तियों से
जो अनायास ही प्रयोग कर जाती हो
बिना जाने समझे
तुम पर वरद हस्त है ईश का
तुम सुलभ हो कर भी अप्राप्य रही हो
तुम्हारे अंदर संभावनाएं आकार लेती हैं
तुम्हारी जिजीविषा में तरंगित होते हैं
स्पंदन आह्लाद के।
तुम अनभिज्ञ हो
अपनी प्रबल ऊर्जा से
उसके प्रहार और उसकी शक्तियों से
इसलिये विकल होती हो,
भटकती हो याचकों के पास
जब कि स्वयं सिद्धा हो।"
उसने कहा
यह सब मुझे देख कर
भरते हुए गहरी सांसें
बंद आंखों से अश्रु में भीगते हुए
हताश बैठे अकेले
नीरवता में।
मेरे नैराश्य से
उद्वेलित होता हुआ एक बवंडर सा
घूमता हुआ मेरे चारों ओर
वह उड़ा ले गया सारी विषमताएं
पसार गया दिव्य प्रकाश
मेरे चारों ओर।
अद्भुत उसके
उन उदार वचनों ने
उछाल कर मुझे किया जागृत
प्रशस्त
दिखलाया मार्ग
प्रकाश का।
नहीं मित्र नहीं था
न वह कोई था सांसारिक बंधु बांधव
मगर जिला गया वह मेरा मृत विश्वास
जैसे हो सम्बल पथ प्रदर्शक
मेरी आगामी जीवन
यात्रा का।