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Surendra kumar singh

Abstract

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Surendra kumar singh

Abstract

खुद के पास

खुद के पास

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जहाँ भी जाते हैं

अपने को साथ लेकर

अपनी बात करते हैं

अपने अनुभव को शब्द देने की

चाहत में

साहित्यकार बन जाते हैं

लिख डालते हैं

गीत गजल और उपन्यास।

अपने विचार को शब्द देने की

चाहत में

प्रबुद्ध विचारक बन जाते हैं

और अपने अनुभव को

शब्द देते हुये

ब्यक्त करते हैं अपने विचार

राजनीति के भी और अपनी सभ्यता के भी

और कितना दिलचस्प होता है ये

की अजनबी से,अपरिचित से

रह जाते हैं हम

शब्दो की दुनिया मे

विचारों की दुनिया मे

साहित्य की दुनिया में

और कभी कभी तो हमे लगता है

हमारे पास सिर्फ शब्द हैं

और हम अपने ही शब्दों में नही हैं

या हमारे विचार का

हमारे जीवन से सम्बंध

भंग हो चुका है

और हम कोशिश कर रहे हैं

अपने विचारों के अनुरूप जीने की

और महसूस कर रहे हैं

मुश्किलों में आनन्द।


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