संवाद कविता (किसान और बादल)
संवाद कविता (किसान और बादल)
किसान: हे बादल! आप मेरे ईश्वर, मेरे मित्र हो मेरी बहुत सहायता करते हो,
किंतु उस वक्त मैं दुखी हो जाता हूं जब तुम बहुत ज़्यादा बरसाते हो।
बादल: भली भांति जानता हूं मित्र कि तुम कितना परिश्रम करते हो,
दिन रात की परवाह किए बिना बंजर भूमि पर सोना उपजाते हो।
किसान: समझते हो मेरी व्यथा, तो फिर क्यों मुझसे रूठ जाते हो,
बेमौसम बारिश कर मेरी सारी मेहनत को मिट्टी में मिला देते हो।
बादल: इतना कठिन जीवन है तुम्हारा ना जाने कब होगा उद्धार,
किंतु बेमौसम बारिश के लिए तो मनुष्य खुद ही है जिम्मेदार।
किसान: मित्र बादल मैं ठहरा गरीब किसान बड़ी-बड़ी बातें नहीं समझता,
मेरी फसल तो तुम पर निर्भर करती है तुम्हारे साथ से ही मेरा उद्धार होता।
बादल: मैं भी क्या करूं मित्र,इंसानों ने प्रकृति को ही दांव पर लगा दिया है,
अपने स्वार्थों की पूर्ति की खातिर प्रकृति का संतुलन बिगाड़ दिया है।
किसान: ठीक कहते हो तुम मित्र, हमें से कोई क्यों नहीं ये बात समझता है,
बढ़ते प्रदूषण के कारण तुम्हें और मुझे दोनों को परेशान होना पड़ता है।
बादल: मित्र तुम भी अपने आसपास समाज में जागरूकता फैलाओ,
प्रकृति का विनाश हमारा विनाश है यह बात सभी को समझाओ।
किसान: शुक्रिया मित्र तुम्हारा, मैं प्रयास जरूर करूंगा,
इस कार्य के लिए सबसे पहला कदम मैं ही उठाऊंगा,
बादल: अच्छा मित्र अब अलविदा, तुम अपना प्रयास करो,
मनुष्य सुधर जाए उस दिन का मैं भी इंतजार करूंगा।