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मिली साहा

Abstract Inspirational

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मिली साहा

Abstract Inspirational

संवाद कविता (किसान और बादल)

संवाद कविता (किसान और बादल)

1 min
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किसान: हे बादल! आप मेरे ईश्वर, मेरे मित्र हो मेरी बहुत सहायता करते हो,

किंतु उस वक्त मैं दुखी हो जाता हूं जब तुम बहुत ज़्यादा बरसाते हो।

बादल: भली भांति जानता हूं मित्र कि तुम कितना परिश्रम करते हो,

दिन रात की परवाह किए बिना बंजर भूमि पर सोना उपजाते हो।


किसान: समझते हो मेरी व्यथा, तो फिर क्यों मुझसे रूठ जाते हो,

बेमौसम बारिश कर मेरी सारी मेहनत को मिट्टी में मिला देते हो।

बादल: इतना कठिन जीवन है तुम्हारा ना जाने कब होगा उद्धार,

किंतु बेमौसम बारिश के लिए तो मनुष्य खुद ही है जिम्मेदार।


किसान: मित्र बादल मैं ठहरा गरीब किसान बड़ी-बड़ी बातें नहीं समझता,

मेरी फसल तो तुम पर निर्भर करती है तुम्हारे साथ से ही मेरा उद्धार होता।

बादल: मैं भी क्या करूं मित्र,इंसानों ने प्रकृति को ही दांव पर लगा दिया है,

अपने स्वार्थों की पूर्ति की खातिर प्रकृति का संतुलन बिगाड़ दिया है।


किसान: ठीक कहते हो तुम मित्र, हमें से कोई क्यों नहीं ये बात समझता है,

बढ़ते प्रदूषण के कारण तुम्हें और मुझे दोनों को परेशान होना पड़ता है।

बादल: मित्र तुम भी अपने आसपास समाज में जागरूकता फैलाओ,

प्रकृति का विनाश हमारा विनाश है यह बात सभी को समझाओ।


किसान: शुक्रिया मित्र तुम्हारा, मैं प्रयास जरूर करूंगा,

इस कार्य के लिए सबसे पहला कदम मैं ही उठाऊंगा,

बादल: अच्छा मित्र अब अलविदा, तुम अपना प्रयास करो,

मनुष्य सुधर जाए उस दिन का मैं भी इंतजार करूंगा।



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