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Kusum Joshi

Abstract Inspirational

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Kusum Joshi

Abstract Inspirational

मेरी मातृभूमि-मेरा कर्तव्य

मेरी मातृभूमि-मेरा कर्तव्य

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जन्म लिया जिस धरती पर,

जिस धरती में हम बड़े हुए,

जिसकी रज में लोट पोट कर,

पैरों के बल पर खड़े हुए,


उस जन्मभूमि पर मातृभूमि पर,

शीश हमारा न्यौछावर हो,

देना चाहो तो यदि दाता,

इतना ही वरदान दो,

अपने भारत की ख़ातिर,

हम हंसते हंसते मर जाएं।


होठों पर एक ही नाम रहे,

अपनी मर्यादा ध्यान रहे,

अपना सुख माँ का आलिंगन हो,

ऊंचा इसका मान रहे,


इसकी रक्षा की ख़ातिर,

अपना सर्वस्व लूटा जाएं,

देना चाहो तो यदि दाता,

इतना ही वरदान दो,

अपने भारत की ख़ातिर,

हम हंसते हंसते मर जाएं।


जिस माँ ने अपने अन्न जल से,

हमारा सारा जीवन सींचा,

जिसके फल अनाज को खाकर,

बड़े हुए और जीवन बीता,


प्राणों से प्यारी उस मातृभूमि का,

कर्ज ना हम पर रहा जाए,

देना चाहो तो यदि दाता,

इतना ही वरदान दो,

अपने भारत की ख़ातिर,

हम हंसते हंसते मर जाएं।।



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