STORYMIRROR

Vivek Gulati

Abstract

4  

Vivek Gulati

Abstract

दिल या दिमाग

दिल या दिमाग

1 min
360

दिल के दौरे अब ज्यादा पड़ने लगे

दिमाग की जगह जो हम इस्तेमाल करने लगे।

दिल लगाने के लिए ही दिल काफी था

जिंदगी के फैसलों में क्यों उसे पड़ना था।

अब रोज उसकी पिटाई होने लगी

चारों ओर मायूसी छाने लगी।

दिमाग का फैसला सही या गलत होगा

सामने वाला ही ज्यादा चोट खायेगा।

दिल की सोच के आगे भावनाओं का परदा होता है

दिमाग से सोचा मंजर साफ होता है।

दिल वाले कभी बदल ना पाएंगे

बार बार सिर्फ मार ही खायेंगे।

पल भर के लिए अच्छा बन क्या मिला

आगे तो सिर्फ गिला और शिकवा।

दिमाग की सोच भले ही स्वार्थी कहलाए

दिल के साथ कौन गम बटाए।

दिल और दिमाग कभी साथ न चल पाएगा

दिल हमेशा घायल और दिमाग मुस्कुराएगा।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract