प्रस्तुति का है ज़माना
प्रस्तुति का है ज़माना
बेचने की लगी है होड़...
कांफ्रेंस रूम हो या सड़क का मोड़ |
कोई बेच रहा है सामान और कोई सपने...
कोई धारणा में उलझा रहा है, अंदाज़ हैं सबके अपने अपने |
सामान कैसा भी हो, प्रस्तुति सही चाहिए...
लीपा-पोती से परहेज नहीं, बस दुनिया सतरंगी होनी चाहिए |
बार - बार और ऊँचा बोल...
झूठ को सच बना सब अपनी रोटी सेकें,
काम के बहाने दिखावे कर, बस अपनी फोटो खींचे |
सोशल मीडिया की यूनिवर्सिटी पूरे उफान पर है...
निजी स्वार्थ पूरा करने, सब मैदान में हैं |
