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Vivek Gulati

Abstract Others

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Vivek Gulati

Abstract Others

प्रस्तुति का है ज़माना

प्रस्तुति का है ज़माना

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बेचने की लगी है होड़...

कांफ्रेंस रूम हो या सड़क का मोड़ |


कोई बेच रहा है सामान और कोई सपने...

कोई धारणा में उलझा रहा है, अंदाज़ हैं सबके अपने अपने |


सामान कैसा भी हो, प्रस्तुति सही चाहिए...

लीपा-पोती से परहेज नहीं, बस दुनिया सतरंगी होनी चाहिए |


बार - बार और ऊँचा बोल...

झूठ को सच बना सब अपनी रोटी सेकें,

काम के बहाने दिखावे कर, बस अपनी फोटो खींचे |


सोशल मीडिया की यूनिवर्सिटी पूरे उफान पर है...

निजी स्वार्थ पूरा करने, सब मैदान में हैं |


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