किस्सा कुर्सी का
किस्सा कुर्सी का
सूझ- बूझ की कमी नज़र आ रही है,
अब तो बोली भी दुश्मन से *मेल खा* रही है |
लगता है असली मुद्दे ढूंढ नहीं पा रहे,
देश का मिज़ाज *समझ* नहीं पा रहे |
वास्तविकता और नैतिकता से दूर हो गए,
ना जाने कब दुश्मन के करीब हो गए |
क्या धरती माँ का स्वाभिमान और सैनिकों का सम्मान,
कर दोगे कुर्सी के लिए क़ुर्बान?
