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Vivek Gulati

Abstract Others

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Vivek Gulati

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किस्सा कुर्सी का

किस्सा कुर्सी का

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सूझ- बूझ की कमी नज़र आ रही है,

अब तो बोली भी दुश्मन से *मेल खा* रही है |


लगता है असली मुद्दे ढूंढ नहीं पा रहे,

देश का मिज़ाज *समझ* नहीं पा रहे |


वास्तविकता और नैतिकता से दूर हो गए,

ना जाने कब दुश्मन के करीब हो गए |


क्या धरती माँ का स्वाभिमान और सैनिकों का सम्मान,

कर दोगे कुर्सी के लिए क़ुर्बान?


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