रिश्ते
रिश्ते
रिश्ते
दूध की तरह होते हैं,
धीमी आंच में
हौले हौले गरम होते हैं,
जब उबलने को बेताब होते हैं
प्यार की लौ में
धीरे से मंद कर दिए जाते हैं,
रिश्तों की डोर को
कस कर पकड़ना होता है,
प्यार के महीन धागों से
गूंथना होता है
एहसासों में मथना होता है,
कुछ खो कर
कुछ मुस्करा कर ही
ये मजबूत होते हैं,
गांठ ना पड़ जाए
ये खयाल जहन में
हरदम रखना होता है,
सहेजना होता है
इन्हें फूलों की तरह,
सींचना होता है
विश्वास के खाद पानी से,
रिश्तों के लिए
खुद को
दांव पर लगाना होता है,
अहम जब आ जाए
रिश्तों में,
दरार धीरे धीरे
दिखने लगती है,
अपनी जड़ों से
फिर ये दरकने लगती है,
बेवजह दिल को
दर्द देने लगती है,
इसलिए वक्त बे वक्त
इन्हें सिलना होता है,
दिल के सौ परतों में
संभाल के रखना होता है,
दूरियां ना बनें रिश्तों में
इन्हें सजाना होता है
प्यार से मानना होता है,
जरा सी आंच
इनकी नींव हिला देती है,
दिल की पटरी से उतार देती है,
भर देती है
मैल, ईर्ष्या कड़वाहट
इस कदर कि
सालों की मेहनत
जाया हो जाती है
पल भर में,
जब कड़वाहट बढ़ जाए
बेतहाशा रिश्तों में,
तो ना चाह कर भी
उबाल आ ही जाता है,
ये टूट कर बिखर जाते हैं
कांच की तरह,
जब रिश्तों में दरार आ जाती है,
बदल जाती हैं राहें
फिर एक दूजे की
ये रिश्ते अधूरे से
कुछ खाली खाली से रह जाते हैं,
अहमियत जिंदगी में
जब अपनी खो देते हैं,
तो बस नाम के ही
रिश्ते रह जाते हैं...!!!