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संजय असवाल "नूतन"

Abstract Fantasy

4.5  

संजय असवाल "नूतन"

Abstract Fantasy

महीने और मौसम

महीने और मौसम

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कंपकंपा कर सूरज भी 

अब उत्तरायणि हो आया है

जनवरी माह की ठंडक और

गुनगुनी धूप सा जहन में छाया है।


हर ओर सुंदर फूल खिले हैं 

लो बसंत ऋतु भी आ गई

बदलते मौसम को देखकर

फरवरी खुद से शरमा गई।


मार्च में होली का रंग अब

हर चेहरे को रंगने लगा है 

गुलाल गुझिया के स्वाद में

मिसरी सा घुलने लगा है।


अप्रैल की तो बात न पूछो

फसलों सा लहलहाने लगा है 

गर्मी की दस्तक सुनकर सभी को

माथे पर पसीना आने लगा है।


मई ने दिखाया रौद्र रुप

सभी हलकान होने लगे

ताल पोखर नदी नाले

गाड़ गधेरे भी सूखने लगे।


तेज धूप और लू ने जून में

सबको नानी याद दिला दी 

ठंडी लस्सी बर्फ का गोला

आइस्क्रीम भी चटवा दी।


वर्षा रानी झूम झूम कर

जब जुलाई माह में आ गई

इस ऋतु में भीगने का सबको

एक सुखद एहसास दिला गई।


गोपालों संग दही हांडी

जन्माष्टमी की पहचान बन गई 

सावन भादों में रक्षा बंधन 

अगस्त की शान हो गई।


सितंबर में उदास बैठे हम

बादलों पर कविता लिखने लगे

देख हमारा शायराना अंदाज़

गरज कर वो बरसने लगे।


त्यौहारों का मौसम आया

अक्टूबर खुशियों से भर गया 

दिवाली की जगमगाहट में

खुशनुमा ये दिल कर गया।


हर तरफ सूखे पत्ते

वीराना सा मौसम लगने लगा

सर्दी के आगमन में नवंबर 

अभी से गुमसम गुमसुम रहने लगा।


सर्द रातें दिसंबर की

हमें यूं कंपकपाने लगी है 

तन्हा बैठे यादों में उनके

सपनों में वो आने लगी है।


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