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अर्चना तिवारी

Abstract

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अर्चना तिवारी

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आशा की किरण

आशा की किरण

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जब लगने लगी थी हारने

जब लगा अब न मिलेगी मंजिल

चाहा जिसे था जीवन से ज़्यादा

वो ही न जब मुझे मिल पाया


सब तरफ था छाया काला अंधेरा

मुझे कुछ भी नजर न आया

डरती थी खो न जाऊँ इन अँधेरों में

बताओ रास्ता कैसे जाऊँ उजाले में


चारों तरफ बंद रास्ता था दिखता

समझ मुझे कुछ नहीं था आता

डगमगाने लगी थी हर आशा की किरण

आता था न कुछ मुझे नज़र


सोचती कैसे नाउम्मीदी से

खुद को बाहर ले जाऊँ

खोजा बहुत हर तरफ़ जिसे

मेरी लेखनी में ही पाया उसे


लगा मुझे मिन्नतों से जो न मिला

आज इस लेखनी से है मुझे वो मिला

दुखित हृदय का था जो सागर

अब मोतियों से हो रहा था उजागर।


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