हरियाली
हरियाली
कृपया पढे़, मनन एवं अमल करें निहित होगा कल्याण।
सोह्मं, सावन की हरियाली जिसने, देखी अब वो घबड़ाए।
पर कुछ यहां नहीं सोचे कि, वो कायम कस रह पाए।।
काटें कुछ दिन रात हरे बट,
हरियाली अब खोय रही।
जिससे परिवेश बने घातक, बीमारी काल सी होय रहीं।।
पौधे लगा के बड़े को अब जिससे हरियाली आये। सावन....1
मिल के धरा को हरा करें,
जिससे परिवेश सुहावन हों,
खुशियों आये कायम राखे, सबके हित मन भावन हो।।
तब कुछ चैन के पल मिल पाये, दुर्दिन भागे हरियाये।
सावन की....2
पावस मास में सब कोई कहते।
गर्मी के संग उमस बढ़े।
पानी जब तक ना बरसेगा, भू की गर्मी नहीं कढ़े ।।
पानी की फुहार पड़ती जब, तब मन को राहत आ
ये।।
सावन....3
लेते थे आनंद सभी जन, खुशियों के गाते थे गीत।
नर नारी मिल के रहते थे, द्वेष भेद की नहीं थी भीत।।
स्वयं बिगाड़ा जब परिवेश, जैसे किया वहीं पाये।
सावन....,4
कुछ की गलती से सब लोग, तकलीफें सहे आस में।
वो तो हाथ कुल्हाड़ी लेकर, छांव तलाशे पास में।।
विविध प्रदूषण रुके न जब तक, तब तक राहत ना आये।
सावन....5
परिवेश हुआ दूषित जिससे, सावन की बहारें खोई।
होता था सावन मनभावन, खोय गया पीड़ा होई।।
बादल दिखे छूछे उड़ जाये, ताल तलैया ललसायें।
सावन....6
पर्यावरण संतुलन के हित, भेद भाव सब दूर करें।
द्वेष भावना लेश न होये, ना खुद को मजबूर करे।।
अविनाशी परिवेश संवारे, तभी यहां पर कल आये।
सावन....7