आप से कब तुम बन गए
आप से कब तुम बन गए
कोरे मन में तेरे नाम का छपना,
इत्तफ़ाक था या तकदीर मेरी,
तेरी निगाहों में खुद को पढ़ना,
हर शाम गली में तेरी राह तकना।
नाम सुनते ही दिल का धड़कना,
साँसों की रफ़्तार का तीव्र होना,
मोहब्बत में भीगी हवाओं का यूँ गुजरना,
जिसकी खुशबू से रूह का महक जाना।
तेरी आदतों में खुद को रंग देना,
प्रीत की बारिश में इस कदर भीग जाना,
थी न मंज़िल कोई न कोई ठिकाना,
हाथ थामे तेरा बस आगे बढ़ते जाना ।
बीते समय का पता ही न चला,
‘आप’ से कब ‘तुम’ बन गए,
साँस बनकर तुम मुझमें धड़कने लगे,
चौखट पर नहीं दिल के हर कोनों पर सज गए।।