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मानव सिंह राणा 'सुओम'

Abstract

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मानव सिंह राणा 'सुओम'

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बेनक़ाब

बेनक़ाब

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कल तक थे अपने अब महताब हो गए।

सुबह सुबह देखा तो आफ़ताब हो गए।


रौशनी से नजर आते रहे अक्सर हमें।

अब पता चला अँधेरे बेहिसाब हो गए।


इंसानियत के चर्चा थे अभी तक आपके 

कैसे अब तुम आदमी बड़े खराब हो गए


सिरमौर थे अभी तक तो आप घोड़े के।

वक़्त बदला कि आप अब रक़ाब हो गए


अब वो इतना बदल गए 'सुओम' क्यों।

चर्चा है चेहरे ही उनके बेनकाब हो गए


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