अनोखा हमसफर
अनोखा हमसफर
हों अकेला जब सफर में,
रास्ते के पत्थर को
हमसफ़र बना लेना
होती नहीं शर्तें कोई,
साथ चलने की उसकी
अगर हो ना यकीन,
जमाने से पूछ लेना
ठोकरों से ही सही,
तेरे साथ तो चलेगा
तेरी नफरतों पर भी,
उसका दिल लगेगा
होती है उसे भी,
कोई अनजानी सी आस
रहती है उसे भी,
किसी मंजिल की तलाश
अपनों से कहीं वो बेहतर है,
कदम से कदम तेरे वो मिलाएगा
भले तू छोड़ना चाहे उसे,
आखिर तक वो साथ निभाएगा
पत्थर को ना पत्थर समझ,
इंसानों से वो बेहतर है
है संवेदना कथित मानव में फिर भी,
भला उनका दिल क्यूं पत्थर है।