गुरु जी
गुरु जी
नित्य प्रातः उठ जो करें,
गुरु चरण प्रणाम ।
सच कहता हूं आपसे,
उसका होता नाम ।।
लगनशील संसार में,
पाते हैं सम्मान ।
मूरख को सद् ज्ञान का,
गुरु देत वरदान ।।
प्रथम गुरु माता बनी,
इसका रखना ध्यान ।
गुरु चरण में बैठकर,
मूढ़ बनें विद्वान ।।
मृग की भांति खोजते,
लोग यहां भगवान ।
गुरु बिना मिलता नहीं ,
कभी किसी को ज्ञान ।।
गुरु से बड़ा जगत में,
कोई नहीं सुजान ।
रखते हैं भगवान भी,
गुरु चरण का मान ।।
धन वैभव पर कर रहा,
माणिक तू अभिमान ।
गुरु भक्ति से ही मिले,
सबको श्री भगवान ।।
फूला फूला फिर रहा,
अपना करें बखान ।
गुरु ज्ञान का सिंध है,
माणिक तू अनजान ।।
कहते हैं संसार से,
धीर वीर बलवान ।
अज्ञानी विज्ञानी बनें,
गुरु महिमा पहचान ।।