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कुमार अविनाश केसर

Abstract

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कुमार अविनाश केसर

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मंज़र

मंज़र

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चले आओ, तुम्हें मंज़र, जहाँ का, हम दिखाते हैं,

सनम! दस्तूर, तुमको इस जहाँ का हम दिखाते हैं।


यहाँ हर दिल में खंजर है, यहाँ हर दिल में काँटा है,

यहाँ मजबूरियों में दिन को, आँखों रात काटा है।


साँसें चल रही हैं, पर यहाँ जीवन के लाले हैं,

कि हाथों में पड़ी जंजीर, मुँह पे, यार! ताले हैं।


कथनी और करनी में, फरक इतना यहाँ पर है,

जहाँ में दिख रहा कुछ और, होता कुछ यहाँ पर है।


यहाँ हर चेहरे के बाद एक चेहरा बेगाना है,

ठहरा आदमी भी एक सफ़र में ही रवाना है।



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