अभिव्यक्ति
अभिव्यक्ति
थी घुटन मन में ...तो बही आंख से धारा
घुटी जो बदली.. तो बरसी..भीगो दी धरा,
नम पलकें, गीला सीला सा ये तन
सांस खींची खींची सी, विचलित मन,
हर चीज को प्रहार से ही चमकती है,
कोयला अग्नि से ही हीरा सा दमकता है,
और तो और घर बनाने के लिए भी
भू को गर्भ तक खोदना पड़ता है,
तात्पर्य-- सीधा सरल एवं पारदर्शी है...
हर नई सोच, कठोर अनुभव से जनमती है
ठोकर खाते खाते ही पन्नों पे बन के स्याही उभरती है,
लिखते लिखते फ़िर कलम भी साथ निभाता है
बन के अभिव्यक्ति किताब पे छप जाता है।