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praveen ohdar

Abstract

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praveen ohdar

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यादें

यादें

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बंद अरमानों के आँसू

कागज़ के फूलों पर  

गिरकर बिखर गये

तलहथी पर राई 

जमने से 

आकाश कुसुम के फूल झड़ गये 

बेवफाई के हर अगन के तपन को 

गर्म रेतों के खेतों ने 

सोख लिए  

जानकार भी अनजान बने रहे  

चकोर की चाहत को चंदा के लिए 

भौंरा क्यों मचलता रहता है 

फूलों के पास जाने के लिये ! 



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