दो दरवाजे
दो दरवाजे
मैं दो में ही उलझा हूं जबसे
गिन रहा हूं दो आंख दो कान
हर चीज़ के दो पहलु
दिन रात, धूप छांव
उपर नीचे,स्त्री पुरुष
यश अपयश पाप पुण्य
जीना मरना, और तो और
अच्छे, बुरे के दो पल
जीवन भर पीछा करती
मरने के बाद भी
दो दरवाजे स्वर्ग और नर्क
आखिर मानव किसका चुनाव करे
ये अपने निर्मित नहीं
फिर धकेला जाता है जीव
जीने के लिए यहां से वहाँ
दो दरवाजे पर।