ग़ज़ल
ग़ज़ल
कहाँ पे आके ये काल ठहरा
मिलन हमारा मुहाल ठहरा
तुम्हीं हो मेरी हर इक ग़ज़ल में
तुम्हीं प आके ख़्याल ठहरा
न बनते जग में मिसाल कैसे
हुनर तुम्हारा कमाल ठहरा
पलक झपकते कहाँ ये गुज़रा
कई महीने ये साल ठहरा
बनी थी कैसे ये दुनिया आख़िर
यहीं पे आ के सवाल ठहरा
कटा के सरहद पे सर जो आया
किसी का वो भी है लाल ठहरा
तेरी जफ़ाओं ने मार डाला
ये क़त्ल लेकिन हलाल ठहरा
टिका न कोई जलाल हर दम
न ही किसी का जमाल ठहरा
नहीं है चेहरे प क्यों तबस्सुम
ये किसका तुझमें मलाल ठहरा।