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Gazala Tabassum

Others

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Gazala Tabassum

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मुद्दत से

मुद्दत से

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गु़बार ग़म के हटे ही नहीं हैं मुद्दत से

दीये खुशी के जले ही नहीं हैं मुद्दत से


उदास रातों में वहशत का रक्स ज़ारी है

हमें तो ख़्वाब दिखे ही नहीं हैं मुद्दत से


किसी भी चीज की होती नहीं तलब दिल को

दुआ को हाथ उठे ही नहीं हैं मुद्दत से।


मिलेगी गेंदे को गुलशन की बादशाहत क्या?

जहां गुलाब खिले ही नहीं हैं मुद्दत से


तवाफ़ उनकी गली का तो रोज़ करते हैं 

मगर किवाड़ खुले ही नहीं हैं मुद्दत से


कोई तो आए गले से लगा के ये कह दे

तेरे बगैर हंसे ही नहीं हैं मुद्दत से।



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