भाग रहा है शहर...
भाग रहा है शहर...
भाग रहा है शहर, पर फिर भी जैसे ठहरा सा है
सुनाई देता है शोर हर तरफ, फिर भी बहरा सा है।
भीड़ है जितनी उतने ही सब तन्हा है यहाँ पर
अपनेपन औ' प्यार का जैसे, ये कोई सहरा सा है।
जिधर देखो उधर हैं रंगीनियाँ ही रंगीनियाँ
फिके हैं फिर भी रंग सारे,ना कोई गहरा सा है।
जो दिखता है होता नहीं,जो होता है दिखता नहीं
हर किसी का जैसे बिगड़ा हुआ यहाँ चेहरा सा है।
कहता है कानून ही यहाँ, कानून बनाए रखने को
पर, कानून ही खुद जैसे अँधा, गूँगा औ' बहरा सा है।।
