पर, कानून ही खुद जैसे अँधा, गूँगा औ' बहरा सा है। पर, कानून ही खुद जैसे अँधा, गूँगा औ' बहरा सा है।
किस की ख़ातिर कौन यहां ठहरा है मैं सुनाता रहा जिसे दर्दे-दिल अपना, क्या पता था कि वो पैदाइशी बहरा ... किस की ख़ातिर कौन यहां ठहरा है मैं सुनाता रहा जिसे दर्दे-दिल अपना, क्या पता था...
पर जिंदा रहकर भी किसी और के कभी होंगे नहीं। पर जिंदा रहकर भी किसी और के कभी होंगे नहीं।
मौन और नि:शब्द तू केवल साहित्यकार का दंभ भरता है। मौन और नि:शब्द तू केवल साहित्यकार का दंभ भरता है।
तुझे जग में आगे बढ़ना है तुझे बहरा अवश्य बनना है। तुझे जग में आगे बढ़ना है तुझे बहरा अवश्य बनना है।