बेवफा जिन्दगी
बेवफा जिन्दगी
जलता रहा ताउम्र हर इंसान,
लोगों से जीते-जीते।
मर गया इंसान अर्थी उठी,
अपनो के रोते-रोते।
हर एक सांस मे चुभन थी,
जो लोगों की तरक्की से।
वो सांस समा गई अग्नि में,
कर बेबफाई ज़िन्दगी से।
जीते-जी हर पग पर जिसने,
कभी ना रब को पूजा था।
अर्थी से लिपट कर उसने,
राम नाम का उद्घोष किया था।
जीवन भर लोगों का हक मारकर तूने,
जो धन-दौलत से तिजोरी को सजाया है।
तेरे अपनो ने मरते ही कर लिया सब कुछ जब्त
तुझको मुर्दा कहकर बेरहम-बेदर्दी से जलाया है।
जो कभी ना खिलाया भूखों को एक दाना
आज तेरही पर हुआ तेरे जमकर खूब भंडारा है।
इंसान तो इंसान पशु-पक्षियो ने भी
किया सुस्वादन, हुआ खूब जमकर हंगामा है।
हर पल तेरा एक अपना तुझको भूला
जिसको ज़िन्दगी भर तू अपना कहता था।
कर पिडदान पाली मुक्ति उसने
जिसके लिए तू जीवन भर संघर्ष करता था।