मदमस्त सावन
मदमस्त सावन
बदरा की चादर,
ओढ़े आया सावन,
मदमस्त फुहार,
बरसावै है।
कोयल के,
कुहू-कुहू से तन-मन,
हर्षित-आनंदित,
गीत गावै है।
पड़ गये, पेड़वन पर झूलन,
सखी-सहेली,
सोहर गावै है।
विरहा की अग्नि,
में जलत राधिका,
कृष्ण मिलन की,
आस संजोये है।
झर-झर बरसे बदरा,
खल-खल बहती नदिया,
मन मे नित नई,
उमंग जगावै है।
देखो-देखो आया,
सावन यारों,
तन-मन को,
आग लगावै सै।
प्रेमी-प्रेमिका,
मिलन की देखो,
शुभ-मंगल,
बेला लावै है।
विरह की ज्वाला,
को बुझावन,
देखो-देखो,
सावन आवै है।
बदरा की दचादर,
ओढ़े आया सावन,
मदमस्त फुहार,
बरसावै है।
देखो-देखो यारों,
तन-मन को हर्षाने,
कारै-कारै बदरा,
संग सावन आवै है।