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शाकिया

शाकिया

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अश्क बनकर जाम छलक

रहे थे पैमानों मे,

गम का समंदर समेटे शाकिया पी रहा था

शराब मयखानो मे।

हर एक घूँट मे निकल रहे अल्फाज़

उसके दर्द भरे नगमे थे,

महफ़िल मे खूब मिली वाह-वाही

टूटे जो दिल के टुकडे थे।


हंस रही थी महफ़िल

रो रहा शाकिया था।

हर एक आह मे वाह-वाही

का ऐसा खुशनुमा जो मंज़र था।

एक आग थी सीने मे

जो बुझ रही थी पैमानो से।

एक जख्म था रूह मे

जो भर रहा था पैमानों से।

अश्क बनकर जाम जो

छलक रहे थे पैमानों मे।

गम का समंदर समेटे

शाकिया पी रहा था शराब मयखाने में।



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