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Others Tragedy

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Others Tragedy

तक़दीर-ए-रूसवाई

तक़दीर-ए-रूसवाई

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उदासी ऐसी छाई है,

हम हंस सके ना रो सके,

बस चारों तरफ तन्हाई है।


जलते थे जो कभी हमारे चिराग़ तले दीये ,

आज उस दीये ने ही घर को आग लगाई है।

कल तक जो कहते-फिरते थे अपने,

आज उन्होंने ही परायेपन की परिभाषा सिखाई है।


ए-मेरी किस्मत तू आज राह के किस मोड़ पर ले आई है।

सदियों से थे जिसके लाखो चाहने वाले,

आज कब्र पर आंसू बहाने वाला कोई नही।

सबके गुनाहों का अंत हुआ,

लेकिन मेरे गुनाहों का आज तक नही।


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