STORYMIRROR

बेटियाँ

बेटियाँ

1 min
606


हमारी तुम्हारी

इनकी उनकी

सबकी हैं।


सुन रहे हो

अरे तुमसे ही

कह रही हूँ।


भाँड़ में जाय

तुम्हारी कविताई

क्या तुम्हें पता नहीं

क्या हो रहा है।


मत बचाओ

उन पापियों को

बच्चियों के विरोध को

दबाने के लिये

कितना गिरेगा तंत्र।


पानी, खाना, बाथरुम

सब पर पाबंदी है

निकलो काशी की

माताओं और बहनों।


इस पुकार पर दौड़ो

बच्चियों पर जुल्म हो रहा है

लाठियाँ भाँजी जा रही हैं

तो समय आ चुका है।


जो हाथ इन बच्चियों

पर अब उठेगा

कटेगा-कटेगा-कटेगा।।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Drama