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Aishani Aishani

Tragedy

4  

Aishani Aishani

Tragedy

बेटियाँ ही विदा नहीं होतीं..

बेटियाँ ही विदा नहीं होतीं..

2 mins
352


केवल बेटियाँ ही बिदा नहीं होती हैं पालकी में बैठकर

उनके साथ ही बिदा हो जाता है उनका बचपन

बिदा हो जाता है उनका बात - बात पर रूठना मनाना! 


केवल बेटियाँ ही बिदा नहीं होती हैं पालकी में बैठकर

उनके साथ बिदा हो जाता है उनका लड़ना- झगड़ना

बिदा हो जाता है भाई बहन का तू तू मैं मैं वाला प्यार! 

केवल बेटियाँ ही बिदा नहीं होती पालकी मैं बैठकर

उनके साथ बिदा हो जाती है उनकी छोटी छोटी खुशियाँ

बिदा हो जाती है उनकी नाजुकता पालकी में बैठते ही! 


बेटियों के साथ ही बिदा हो जाती है उनकी शोख़ियाँ

माँ - बाप पर हक़ जताने की ज़िद भी बिदा हो जाती है

बिदा होती है उनके साथ बचपन की सखियाँ उस पालकी में बैठते ही

उनका हर शौक, हर सपना बिदा होता है उनके साथ दहलीज लाँघते ही बाबुल का ! 


आ जाती है उनके अंदर ग़ंभीरता, बिदा लेती है चपलता

केवल बेटियाँ ही बिदा नहीं होती हैं पालकी में बैठकर

भूल कर सारे नखरे, जिम्मेदारियाँ बैठ जाती हैं उनके साथ पालकी में! 


बाबुल का आँगन ही नहीं, उनकी किताबें, उनकी यादें

भाई बहन के झगड़े, घर का हर कोना जो आबाद होता था उनसे, वो पेड़ फल फूल जो लगा रखा था बेटियों ने 

सब विदा हो जाता है उनसे बाबुल की देहलीज पार करते ही! 


जाने कहाँ से आ जाती है उनके अंदर दुःखों को छुपाने की कला, 

आँसुओं को चुपचाप पी जाने का हुनर, अपमान सहने और ज़ख़्मों को दफन करके सबको बाँधे रखने का तरीका, 

घर की दहलीज लांघकर पालकी में बैठते ही! 


छोड़ जाती हैं अपने पीछे एक खालीपन, एक ख़ामोशी! 

हाँ, केवल बेटियाँ ही बिदा नहीं होती हैं पालकी में बैठकर

उनके साथ विदा हो जाता है उस पालकी में बैठकर माँ बाप का आसरा भी!


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