बेरोजगारी
बेरोजगारी
देश के कोने कोने में फैली भीषण महामारी है
न आज जीवन सुरक्षित है न कल की तैयारी है
युवा वर्ग का हाल देखो वो कितना लाचार है
पढ़ा-लिखा है बहुत लेकिन मिलता ना रोजगार है
दर - ब - दर वो भटक रहा है
कदम-कदम पर अटक रहा है
बेरोजगारी से झुलस रहा है
हाल न उसका सुधर रहा है
जीवन मुश्किलों से भरा हुआ है
युवा बेचारा सहमा हुआ है......
न मिली मंज़िल न कोई रास्ता है
सियासत का दबदबा बना हुआ है
माता-पिता ने अपना सबकुछ लुटाया है
बच्चों को ऐसे देख उनका मन भर आया हैै
बड़े-बड़े ख़्वाब थे देखे जिनका अंत आया है
बेरोजगारी ने ना जाने कितनों का घर जलाया है
युवा ; तनाव, क्रोध, कुंठा, अवसाद से भरा हुआ है
भविष्य की कल्पना भर से बुरी तरह वो डरा हुआ है
ना पहनने को अच्छे कपड़े हैं ना खाने को अनाज है
ना हाथ में पैसा है ना ज़िंदगी में........कोई काज है
जीवन बोझिल- सा लगने लगा है
परिवार का पोषण यूं थमने लगा है
ना सुकून है ना जीवन संवरने लगा है
ना दुख का बादल सरकने लगा है....
परिणाम देखो नशे में चूर युवा है
पीता शराब अब खेलता जुआ है
ड्रग्स से बेहाल वो पड़ा हुआ है
बेकारी से जीवन धुआं-धुआं है
इस महामारी ने तो सबको नाेंच नोंच कर खाया है
ना कमाने का अवसर दिया ना किसी का साया है
अभावों में बेबस जीवन, कष्टों की भरमार है......
ना दिखती कोई उम्मीद ना कोई मददगार है........।