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Bhavna Thaker

Tragedy

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Bhavna Thaker

Tragedy

बेरहम ज़िंदगी

बेरहम ज़िंदगी

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समय रूठा है या फ़ितरत ए ज़िंदगी ही बेरहम है

हर इंसान का यही कहना है,

कितनी जद्दोजहद के बाद भी

कुछ सही होता ही नहीं।


चुनौतियों से भरी दूर से ही हसीन लगती है

छूते ही पोरे जल जाते हैं,

कितना गले लगाया ज़िंदगी मेरी होती ही नहीं। 


न जाने कौनसी प्यास ने पैरों को

दौड़ने पर मजबूर किया,

मृगजल के रेगिस्तान में

नदियों सी नमी दिखती ही नहीं। 


हालात के तीरों से छलनी है

ज़िंदगी का वितान,

तराशते थक गए लकीरों का

बियाबान खुशियां मिलती ही नहीं।


रास्ते ही रास्ते नज़र आते हैं

मंज़िलों की रंगत दिखती नहीं,

तम की लड़ियां बिखरी है हरसू

रोशन राह कोई दिखती ही नहीं।  


आसमान चाहूँ उजला धरती पर

धानी रंग का चोला,

कंटीली काया हुई बबूल से घिरा जहाँ

सही दिशा सूझती ही नहीं। 


दर्द की गर्त में अपना पता ढूँढे

मन बावरा कदमों के निशां ढूँढे,

बवंडर से घिरी ज़िस्त है

महकती बगियां खिलती ही नहीं। 


मेला है रिश्तों का फिर भी

दिल अकेला

कि सीको मेरे सुख दु:ख क्यूँ हो गिला,

गम को कितना पीया प्यास बुझती ही नहीं। 


जीवन की घटनाओं में मेरी हाज़री

आवश्यक है इस इल्म से ज़िंदा हूँ,

ज़ालिम ज़िंदगी से कोई उम्मीद दिखती ही नहीं।


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