STORYMIRROR

Dr Jogender Singh(jogi)

Tragedy

4  

Dr Jogender Singh(jogi)

Tragedy

बेमुरव्वत

बेमुरव्वत

1 min
22K

चिन्ह प्रश्न वाचक,  

रोकता हर वाक्य को।

यह क्यों हूं ?

यह क्यों नहीं हूं ?


भूत बन, पीछा करता बीता कल,

लड़ाई, गुस्से, रूठने के कुछ पल।

क्यों लात मारी थी किसी को,

हाथ भी मरोड़ डाला था।


झापड़ इतना तेज़ क्यों मारा ? 

खून निकाल डाला था।

सींग युक्त,

रक्त रंजित आंखों वाला,

एक साया नज़र आता।


यही सच,   

कड़वा अतीत मेरा बतलाता।

मधुर मुस्कान की ओढ़नी,

घूमना बन सज्जन।


तरीका छुपाने का

खूब निकाला,

दुर्जनता को।


मिला सकता नहीं ख़ुद से नज़र,

क्या कर डाला ?

आशियाने को किसी के

तफ़रीह में जला डाला।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Tragedy