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Rashmi Sinha

Tragedy

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Rashmi Sinha

Tragedy

बेदर्द दुनिया

बेदर्द दुनिया

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लो आज पुनः खामोश हो चली,

एक मुखर आवाज़,

आंखों में दर्द का समंदर 

लहर रहा था,

जीते जी उसे न समझे जाने का,

कष्ट चेहरे पर नज़र आ रहा था।

जुबाँ को लकवा मार चुका था,

जीवन रक्षक उपकरणों के सहारे,

कुछ कहने को व्याकुल नज़र आ रहा था

वैचारिक क्रांति से भरा दिमाग,

विचार शून्य हुआ जा रहा था,

और दुनिया---

उसके किसी भी विचारों से न सहमत

दुनिया---

उसकी सबसे बड़ी आलोचक दुनिया,

उसकी इस अभूतपूर्व शांति को,

"मुखर" हो जाने की,

दुआएं कर रही थी,

कभी न समझा सका जिन विचारों को,

पत्र, पत्रिकाओं और मीडिया में,

उन्हीं के गुणगान करती नज़र आ रही थी

और अपनी" बेदर्द दुनिया" होने की

रीति निभा रही थी,

और अब जो जा चुका था

इस दुनिया से,

पाठ्य पुस्तकों के माध्यम से,

उसी के आदर्शों पर,

चलने की सीख दिए जा रही थी।



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