बचपन
बचपन
कभी फूल, कभी तितली और कभी झूला
बड़े तो हो गये है हम पर बचपन नहीं भूला
बड़े हुये तो खो गया मां का आंचल कहीं
पापा के कंधे पर चढ़ने का वो स्वप्न नहीं भूला।
जो खो गया वो दुबारा नहीं मिला हमको
मैं अपनेपन की मिट्टी का वो आंगन नहीं भूला
डराता है अब अंधेरा अकेले पन में जीने का
मैं अपने गांव के उजले रिश्तों का दर्पण नहीं भूला।
वो खुशबू वो फूल वो गुड़िया की शादी
कभी मिल जायेगा मुझ को वो छुटपन नहीं भूला
जब देखता हूं अपनी उम्र से बड़े होते हुए बच्चे
कहां खो गया वो लड़कपन जो मैं नहीं भूला।
